मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

कार्टून:- लो जी फिर आया ज़माना चिट्ठियों का...


25 टिप्‍पणियां:

  1. फोन पर बात करना तो सच में खतरों का खेल है।

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  2. सही तरीका है। फोन टेप से तो बचे। लेकिन डाकिया पट गया तो????????????

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  3. अच्छा हुआ ..पुरानी विधा..इसी बहाने लौटी :) ..लोगो की सम्प्रेषण क्षमता का विकास होगा.

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  4. @निर्मला कपिला जी .....डाकिया पट तो कबूतर को काम पर लगा देंगे !

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  5. खतरा तो वहां भी हो सकता है --लेटर बम का ।

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  6. दुनिया गोल है ना!

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  7. bahut badhiya kartoons .maine kai dekh liye hai dobara aana huaa to aur bhi dekhoongi .

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  8. मतलब मजबूरी का नाम ओसामा .....

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  9. जी हां! मैने भी दस पोस्ट कार्ड खरीद लिये हैं। :)

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  10. इसमें क्या है ? अभी फोन टेप होते हैं फिर खत फोटो कापी होने लग जायेंगे :)

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  11. kajalji !kaartoonist yug drshtaa hotaa hai .vah samay kaa atikraman kar samay ke paar dekh letaa hai .aap bahut achchhaa kaam kar rhen hain .
    dhnya bhaag hamaare jo aap padhaare .
    veerubhai .

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  12. सही है पर हमारे गाँव के पोस्टमास्टर साहब जब बोर होते हैं तो लोगों की चिट्ठियों को भी खोल कर पढ़ जाते हैं... किसी की मजाल है जो बोल दे कि लिफाफा खुला कैसे है.. हमारे लिए तो फोन ही सही है जी..

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  13. भई ज़रा संभल के। सुना है,होशियार लोग कोई लिखित प्रमाण नहीं छोड़ते!

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  14. वाह! वाह! जरा संभल के चिठ्ठियों की राह में रोड़े बहुत हैं।
    ====================

    प्रेम पर एक सदाबहार टिप्पणी-
    ==================
    प्रेम सुपरफ्लेम है।
    मजेदार गेम है॥
    हार-जीत का इसमें
    होता न क्लेम है॥
    -डॉ० डंडा लखनवी

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  15. कबूतर ज्यादा सेफ़ रहेगें न

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